स्वपन के संसार में,
शब्दों के व्यापार में,
तुम्हारा वजूद तुम्हारा अहसास कराता है
अन्यथा तो तुम्हें अब अक्सर ढूँढा ही जाता है।
तुम्हारे दिन का उत्सव,
मानो तुम ही तो हमारे दिल की मल्लिका हो।
पर बाकी दिन..........
कौन हो तुम? क्यों हो यहाँ?
शर्मिंदा न करो, चली जाओ।
पड़ोसन मौसी से तो हमारी शान है,
वही तो अब सर्वमान, सर्वशक्तिमान हैं।
तुम्हारा ध्यान ही हमें टीस की गालियों में आता है
जब किसी को हृदय से कौसा जाता है।
तुम्हारा प्रयोग अब दुरुपयोग हो गया है
क्योंकि मौसी का जलवा तुमसे कहीं बड़ा है।
पर कुछ बात फिर भी है तुममें मेरी प्यारी हिंदी माँ
सपने आज भी मुझे तुझमें ही आते हैं,
आँसू भी तुझमें ही गाल भिगो जाते हैं
प्यार मुझे तुझमें जाहिर करते भाता है
क्योंकि ए हिंदी तुझमें अपनापन आता है।
तुझमें अपनापन आता है।
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