गलत निर्णय
चौ. चरण सिंह विवि. ने एक ही वर्ष में दो अलग-अलग कोर्सो की डिग्री को मान्यता देने का निर्णय लिया। यह निर्णय वर्तमान में जितना लुभावना प्रतीत हो रहा है इसके दूरगामी परिणाम उतने ही कष्टकारी होगें। एक ही वर्ष में दो अलग-अलग कोर्सों में किये गये परिश्रम का सुखद परिणाम पाने की चाह में विद्यार्थी सहर्ष इस निर्णय का स्वागत तो कर रहे हैं परन्तु इसके आगामी परिणाम के प्रति जागरूक नहीं है। यह निर्णय विवि स्तर पर है। यू. जी. सी. की नियमावली में इस प्रकार डिग्री प्राप्ति का कोई प्रावधान नहीं है। अब प्राप्त मान्यता के आधार पर जब ये विद्यार्थी नौकरी की तलाश में अपनी राह तलाशेगें तब प्रश्नों व सन्देह के चक्रव्यूह से ये घिरे हांेगे। इसी विवि में घटित उत्तरपुस्तिका मूल्यांकन घोटाले की प्राप्त चिन्हित अंकतालिका विद्यार्थियों को हर पल लज्जित करती है। पुनः विवि विद्यार्थियों के साथ यह खिलवाड़ क्यों कर रहा है? भारतीय शिक्षा तंत्र के पल-पल बदलते नियमों ने पहले ही विद्यार्थियों के भविष्य को काली कोठरी में धकेल रखा है। एन. सी. टी. ई. ने 2009 तक शिक्षा शास्त्र में एम. ए. करने वाले विद्यार्थियों को एम. एड. के समकक्ष मानने वाले अपने बनाये नियम को स्वतः ही रद्द कर दिया। एम. एड. होने की चाह में 2009 में दस हजार से अधिक विद्यार्थियों ने एम. ए. शिक्षा शास्त्र में दाखिला लिया जो अब एक व्यर्थ की डिग्री के तुल्य हो गई है। इस बेपेंदी के लोटे रूपी शिक्षा-तंत्र में विद्यार्थी कोई भी निर्णय बहुत सोच समझकर लें।
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