‘‘टिकैत काँड’’
‘‘सिसौली गाँव काँड’’ या कहें ‘‘टिकैत काँड’’, यह घटनाक्रम आत्मसंयम की कमी का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बनकर उभरा है। टिकैत के एक ब्यान ने न जाने कितनी जाने दाँव पर लगा दी। यह सही है कि इस घटना से लोगों का टिकैत के प्रति भरपूर प्यार देखने को मिला है परन्तु क्या टिकैत लोगों के भरोसे को कायम रख पाये?
टिकैत अपने राजनीति करियर में अपनी ब्यानबाजी के लिए शुरू से ही सुर्खियों में रहे हैं। शायद उनकी इसी हिम्मत के कारण लोग उन्हें अपना नेता स्वीकार करते हैं। परन्तु क्या एक नेता की पहचान मात्र उग्र ब्यानबाजी ही है या इस प्रकार की ब्यानबाजी मात्र विश्वासमत प्राप्त करने का साधन है?
टिकैत की मुख्यमंत्री के खिलाफ की गई टिप्पणी ने भले ही समाज के एक तबके में उल्लास भर दिया है। परन्तु क्या इस प्रकार की टिप्पणी ‘भारतीय संविधान’ को गाली देने के समान नहीं है? जो व्यक्ति अपनी योग्यता के बल पर उस पद को सुशोभित कर रहा है जहाँ वह एक पूरे राज्य की जनता का प्रतिनिधि है, जनता जनार्दन के द्वारा चयनित है, उस व्यक्ति के खिलाफ अशोभनीय शब्दों का प्रयोग उस राज्य की जनता की भावनाओं के आघात पहुँचाने जैसा है। यह सही है कि हमारे संविधान ने हमें ‘‘सार्वजनिक स्थानों पर बैठक कर अपने विचार प्रस्तुत करने’’ का अधिकार दिया है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि हम कहीं भी खड़े होकर ‘‘भारत मुुर्दाबाद’’ के नारे ही लगाने शुरू कर दें।
नेता जनता का पथ प्रदर्शन होता है। जैसे नेता कहता है वैसा ही भोली जनता मान लेती है। अतः यह नेता की जिम्मेदारी होती है कि वह अपनी जनता का सही मार्ग दर्शन करें न कि समाज में बटँवारा करने जैसे उग्र शब्दों का प्रयोग कर जनता का भडकाये व खुद को बचाने के लिए भी भोली जनता को ही हथियार बनाकर राजनीति का गंदा खेल खेले।
भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने देश के संविधान का, अपने नेताओं का व अपने देश की जनता का सम्मान करें और समाज में एकरूपता लाने का प्रयास करें।
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