अपराध, समाज और पत्रकारिता
वर्तमान मानव-समाज अनेक जटिल समस्याओं से गुजर रहा है। इन समस्याओं में अपराध प्रमुख है। मानव-सभ्यता के विकास के साथ-ही-साथ अपराधों की मात्रा मंे निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। अपराधों की मात्रा में निरन्तर वृद्धि के कारण ही ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिक सभ्य समाज में अपराध के सामाजिकरण की प्रक्रिया गतिशील है। यदि सामाजिक व्यवस्था सुदृढ़ है, आर्थिक सम्पन्नता है, पारस्परिक सद्भाव है, सांस्कृतिक जागरूकता है और समाज में प्रेम, दया, करूणा आदि मानवीय गुणों को महत्व दिया जाता है तो अपराध की घटनाएँ कम होंगी। इसके विपरीत सामाजिक, अव्यवस्था, विपन्नता और सांस्कृतिक चेतना शून्य समाज मंे अपराध बढ़ेंगे। अतः यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि समाज में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखने और आपराधिक प्रवृŸिायों पर अंकुश रखने के लिए एक व्यवस्थित, सुसंस्कृत और जागरूक सामाजिक संरचना बहुत ही आवश्यक है।
प्रेस की भूमिका इस मामले में बहुत महत्व रखती है। एक जिम्मेदार प्रेस अपने समाचारों की प्रस्तुति से समाज में सद्गुणों को बढ़ावा देता है और लोगों में जागरूकता फैलाता है। विकासशील लोकतान्त्रिक देशों में प्रेस का महत्व इसीलिए बहुत अधिक माना जाता है। यही कारण है कि पुराने मनीषियों ने पत्रकारिता का उद्देश्य और संकल्प सामाजिक योगक्षेम माना है। यद्यपि प्रेस सही अर्थाें मेें सामाजिक दर्पण की भूमिका निभाता है फिर भी इसको अपनी इस भूमिका के निर्वाह मेें सामाजिक जिम्मेदारियांे के आदर्श को सम्मुख रखना चाहिए। आदर्श पत्रकारिता अतीत के परिप्रेक्ष्य में वर्तमान पीढ़ी को भविष्य के लिए तैयार करती है। वर्तमान समस्याओं के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालकर वर्तमान पीढ़ी को उन पर सोचने, समझने एवं समाधान प्रस्तुत करने के लिए अनुप्रेरित करती है। पत्र-पत्रिकाओं की निर्भीक वाणी न्यायसंगत सामाजिक-व्यवस्था की स्थापना में सहायक हो सकती है, अन्यायी-अपराधी-भ्रष्टाचारी को कठघरे के पीछे खड़ा कर सकती है, जन-सामान्य को समुचित दिशा-निर्देश और प्रशिक्षण दे सकती है तथा जन-जागृति एवं दायित्वबोध के गुरूतर दायित्व का निर्वाह कर सकती है।
वहीं दूसरी ओर आज पत्रकारिता के उद्देश्य और लक्ष्य बदल रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि आज पत्रकारिता मिशन न रहकर पेशे में बदल चुकी है। मात्र नवीनतम सत्य सूचनाओं की पकड़ के लिए सनसनीखेज ख़बर को और भी तीव्र रंग देकर प्रकाशित करते हैं। इसके लिए आपराधिक घटनाआंे का चयन किया जाता है।
आज पाठकों के लिए भी रोमांच उत्पन्न करने वाली खबरें होती है-‘आपराधिक ख़बरें। सभी आयु-वर्ग व सभी जाति-धर्मों के लोग, अमीर-गरीब सभी इन ख़बरों को उत्सुकता व रूचि के साथ पढ़ते हैं। ऐसा नहीं है कि समाज में आपराधिक प्रवृति का संचार हो रहा है इसलिए लोग इन ख़बरों को पढ़ने में रूचि रखते हैं अपितु ये ख़बरें समाज को उनके आस-पास हो रहे अपराधों से सचेत करती हैं। अपराधी आपराधिक घटनाओं को किस प्रकार अंजाम देते हैं, किस क्षेत्र-मौहल्ले में अपराध बढ़ रहा है, अपराध का स्वरूप क्या है, यहाँ तक कि इन अपराधों से स्वयं की रक्षा किस प्रकार की जा सकती है- इन सभी प्रश्नों के उत्तर मिलते हैं ‘अपराध पत्रकारिता से’। अपराध पत्रकारिता के समाज पर सकारात्मक प्रभाव अग्रलिखित हैं-
1ण् अपराध पत्रकारिता समाज में जागरूकता लाने का सशक्त माध्यम है।
2ण् अपराध की ख़बरों का प्रकाशन सरकारों के भ्रष्ट-तंत्र पर अंकुश लगाता है।
3ण् सामाजिक सचेतता लाने में अपराध पत्रकारिता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
4ण् विभिन्न प्रकार से हो रहे अपराधों से बचाव के उपायों का ज्ञान अपराध पत्रकारिता के माध्यम से होता है।
5ण् अपराध के तरीकों की पूर्व जानकारी होने से बचाव हेतु मानसिक मजबूती प्राप्त होती है।
परन्तु प्रश्न यह उठता है कि क्या अपराध पत्रकारिता अपने वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त कर रही है? क्या अपराध पत्रकारिता के नकारात्मक प्रभाव सकारात्मक प्रभावों पर भारी नहीं पड़ रहे हैं? क्यों अपराध पत्रकारिता समाज को सही दिशा प्रदान करने में असफल हो रही है? अपराध पत्रकारिता की अतिश्योक्ति समाज को सच से दूर कर पथभ्रष्ट नहीं कर रही है? इन प्रश्नों के उत्तर अपराध पत्रकारिता के समाज पर पड़ने वाले अग्रलिखित नकारात्मक प्रभावों का विश्लेषण कर समझा जा सकता है-
1ण् समाचार-पत्रों की अविवेकपूर्ण अपराध रिपोर्टिंग के कारण समाज अपराध करने की ओर उन्मुख हो रहा है।
2ण् आपराधिक घटनाओं के प्रकाशन से सामाजिक अविश्वास में वृद्धि हो रही है।
3ण् आपराधिक घटनाओं के बढ़ा-चढ़ाकर किये गये प्रस्तुतीकरण के कारण आपराधिक रिपोर्टिंग की विश्वसनीयता घट रही है।
4ण् आपराधिक की घटनाओं की रिपोर्टिंग के कारण समाज में भय बढ़ रहा है।
5ण् आपराधिक घटनाआंे को समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पढ़कर बच्चें अपराध की ओर उन्मुख हो रहे हैं जिससे बाल-अपराधियों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
6ण् आपराधिक घटनाओं के अतिश्योक्तिपूर्ण प्रस्तुतीकरण के कारण समाज में नकारात्मक सोच का प्रसार हो रहा है।
7ण् सनसनीखेज, खून-खराबे युक्त व नकरात्मक तत्व वाली ख़बर पर किये जाने वाले असन्तुलित कथनों से समाज भ्रमित होता है।
8ण् आपराधिक ख़बरों में अपराधी को हीरों की भाँति प्रस्तुत किया जाता है जिसके कारण किशोरों व युवाओं में अपराधियों के प्रति गरिमा का भाव बढ़ रहा है।
9ण् अपराध रिपोर्टिंग से समाज में यह संदेश जा रहा है कि शीघ्र कामयाबी प्राप्त करने के लिये अपराध, अपराधियों का संरक्षण शार्टकट रास्ता है।
10ण् ‘कानून एवं दण्ड़ की प्रक्रिया एवं संस्थानों का नियंत्रण कम होने के कारण दण्ड़ का भय कम हुआ है।’ इस प्रकार की भावना के विकास में पत्रकारिता की अहम भूमिका है।
11ण् अपराधी को हीरों की भाँति प्रस्तुत करने से अपराधियों में इस प्रकार की प्रसिद्धि प्राप्त करने की चाह बहुत बढ़ जाती है परिणामस्वरूप अपराधों की संख्या में वृद्धि होना।
12ण् अपराधियों को अपराध की नवीन तकनीकियों का ज्ञान हो जाता है। जिससे वे नई-नई रणनीतियाँ बनाते हैं। जैसे- सफेद अपराध जैसे नकली सामान बनाने का गोरख़धन्धा। जब कोई अपराधी पकड़ा जाता है और ये समाचार अख़बार में प्रकाशित होता है इससे वह अपराधी तो जेल चला जाता है परन्तु जन्म दे जाता है अपने जैसे कई नक्कलों को जो उस समाचार को पढ़कर नया आईडिया लेते है।
13ण् समाचार पत्र अपराध के उपरान्त ही ख़बर को प्रकाशित कर अपराधी को सावधान कर देते हैं। अपराधी ख़बरों के माध्यम से सावधान होकर पुलिस की गिरफ्त में आने से बचता रहता है।
14ण् बच्चे अपराध की घटनाओं को पढ़कर विभिन्न प्रकार की जिज्ञासायें रखते हैं जिनका यदि सही समाधान नहीं दिया जाये तो वे भटक सकते हैं।
15ण् यदि किसी जाति या धर्म विशेष के व्यक्ति के साथ घटना घटी तो उस जाति या धर्म से सम्बन्धित लोग उसका बदला लेने के लिये एक बार फिर से अपराध करते हैं और इसका सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है विद्यार्थी या उस आयु के लोगों पर क्योंकि उनकी सोच उतनी परिपक्व नहीं होती और वे समाचार पढ़कर उसके बारे में तुरन्त निर्णय ले लेते हैं।
16ण् मीडिया द्वारा की जा रही आपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिंग के कारण समाज का स्तर गिर रहा है।
17ण् मनोचिकित्सकों के अनुसार भाई द्वारा भाई की हत्या, बेटे द्वारा पिता की हत्या, पति द्वारा पत्नी की हत्या आदि जैसे अपराध अपराध न होकर ‘असुरक्षा’ की भावना की तीव्र प्रतिक्रिया का परिणाम है जिसमें वह सोचता है कि ‘उसके परिवार का क्या? और वह अपनों को मार के खुद भी मरने का प्रयास करता है।’
यह एक ऐसा अपराध है जो घर से शुरू होता है और घर के माहौल में ही पनपता है और धीरे-धीरे समाज में फैल जाता है। यह तो हुई एक वारदात की बात परन्तु जब अगले दिन यह ख़बर मिर्च-मसाला के साथ अख़बारों में प्रकाशित होती है तो जन्म होता है वैसी ही मनोदशा से गुजर रहे और नये अपराधियों का जिन्हें लगता है कि हत्या करने वाला इन्सान सही था।
मीडिया में बढ़ रहे उपभोक्तावाद व प्रतिस्पर्धा ने गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग को जन्म दिया है। परिणामस्वरूप मीडिया अपने वास्तविक उद्देश्यों से विमुख हो स्वःहित की अन्धी दौड़ में दौड़े जा रही है। पत्रकारिता मात्र पेशा न होकर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, समाज के प्रति जवाबदेही है। इसका उद्देश्य समाज को सच्चाई का आईना दिखाकर जन-हित की रक्षा करना है। अतः आज मीडिया को आवश्यकता है अपने दायित्वों का ईमानदारी व जिम्मदारी से निर्वाह करने की और लोभ-लालच का परित्याग कर जन-हित के प्रति समपर्ण की भावना से इस पेशे की उपयोगिता व सार्थकता सिद्ध करने की।
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