Monday, May 16, 2011

युवा अपनी जिम्मेदारी समझें


युवा अपनी जिम्मेदारी समझें

बरेली में भर्ती के दौरान चला मौत का तांडव निःसन्देह प्रशासनिक बदइंतजामी को प्रमाणित करता है। ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावर्ती पुलिस प्रशासन के आम जनता के प्रति गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को भी सिद्ध करती है। बेरोजगारी की मार से तड़पते युवा का दर्द भर्ती के लिए उमड़ा हुजूम भली-भाँति प्रदर्शित कर रहा है। लाचार व आशातीत शिक्षित युवा नौकरी की चाह में जान पर खेल रहा है। कितनी दयनीय स्थिति में भारत का भविष्य अपने सपने तलाश रहा है!
इस घटना के लिए जितना पुलिस प्रशासन जिम्मेदार है उतना ही धैयेहीन, उदंड़ और परजीवी युवा भी। कहीं भी किसी भी प्रकार के आयोजन में प्रत्येक नागरिक अतिथि स्वरूप सम्मिलित होना चाहता है। यहाँ तक कि अपने नागरिक होने के उत्तरदायित्वों को भी नहीं निभाता। संयमित दिनचर्या की तिलांजलि हम बहुत पहले ही दे चुके हैं और जब इसके परिणाम इस प्रकार की भीष्ण घटनाओं के रूप में आने लगे हैं तो पूर्ववत् जिम्मेदारियों का दोषारोपण प्रारम्भ हो जाता है। ट्रेन की छत पर यात्रा करना कानूनी व सुरक्षा दोनो दृष्टि से वर्जित व घातक है। असंयमी होने के कारण उत्पन्न उपद्रव की बात तो बाद में करें पहले तो युवाओं से यह पूछा जाये कि वापसी के समय भी बसों की छत पर खड़ा होने वालों के साथ यदि पुनः कोई दुर्घटना होती है तो उसके लिए भी क्या पुलिस प्रशासन जिम्मेदार होगा? क्या युवाओं की अपने प्रति कोई समझ या सतर्कता नहीं है? अतिआत्मविश्वास व युवा होने का घमण्ड इनके साथ हुए हादसों के लिए इन्हें ही दोषी ठहराता है। यदि देश का प्रत्येक नागरिक अपने नागरिक होने के धर्म का निर्वाह करना सीख जाये तो किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना से बचा जा सकता है।

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