Monday, May 16, 2011

माँ


माँ

‘माँ’ छोटा सा शब्द परन्तु बिलकुल अनमोल। इस छोटे से शब्द में कितने भाव, कितनी आत्मीयता, कितनी ममता निहित है। दुनिया में किसी भी रिश्ते से बड़ा व गहरा रिश्ता होता है माँ का रिश्ता। इस रिश्ते का सौन्दर्य इसकी मौन भाषा में विद्यमान है। माँ को अपने बच्चे के भाव, उसके दुःख-दर्द, प्रेम, स्नेह, क्रोध, प्रसन्नता का अहसास करने के लिए किसी शब्द की आवश्यकता नहीं होती। वह बच्चे के स्पर्श, उसकी गंध, उसकी कुलमुलाहट और उसके भावों से उसकी सभी भावनाओं को समझ लेती है। सच कहें तो एक सुन्दर अहसास है माँ। ईश्वर से बढ़कर अप्रतिम रचना, जो अतुलनीय है, पूजनीय है, अविस्मरणीय है। जिसके बिना बच्चे के संस्कार अधुरे हैं, जिसके बिना उसका विकास दुर्गम है। उसकी गोद के सुकून के सम्मुख स्वर्ग भी तुच्छ है। उसका प्यार भरा स्पर्श सुरक्षा की भावना का संचार करता है। वह प्रेरणा देती है, समर्थन करती है और मार्गदर्शन करती है। वह एकल काया सभी कुछ व्यवस्थित रखती है। प्रत्येक जिम्मेदारी को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानती है। और वह भी बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी संकोच अथवा प्रतिफल की चाह के। वह कभी रूकती नहीं है। निरन्तर कार्यरत रहती है। अथाह सहनशक्ति की स्वामिनी वह सदा संतुष्ट रहती है। कभी शिकायत नहीं करती। वह मात्र अपने परिवार के लिए नहीं जीती वरन् उसे समाज की भी चिन्ता है। इसलिए सभी सामाजिक दायित्वों का भी निर्वाह करती है। कितनी ऊर्जावान रचना है यह। चाहे थककर चूर हो परन्तु बच्चे की एक आह पर अनापक्षित ऊर्जा से सराबोर हो बच्चे के लिए तड़प उठती है। एक अद्भुत कृति जिसके समतुल्य संसार में अन्य कुछ भी नहीं है। आज आठ मई, मदरस डे के अवसर पर सभी माँओं को नमन। धन्यवाद शब्द आपकी तपस्या के सम्मुख अर्थहीन व महत्वहीन है। बस ईश्वर से आपके लिए दुआ करते हैं और आपको कोटि-कोटि नमन करते हैं।

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