असुरक्षित विद्याभवन
टीचर इज लाइक ए कैंडिल! ये कैंडिल अब विद्यार्थियों के मार्गदर्शक के रूप में नहीं अपितु विद्यार्थियों के भविष्य को खाक करने व शोषक के रूप में अपनी विशिष्ट भूमिका निभा रही है। शहर के एक नामी पब्लिक स्कूल में ग्यारहवीं की छात्रा के साथ गुरू द्वारा किया गया अभद्र व अश्लील व्यवहार गुरूओं की शरण व मार्गदर्शन की विश्वसनीयता को संदेह के घेरे में खड़ा कर रहा है। विद्या के मंदिर में उपासक रूपी विद्यार्थियों के साथ किये जा रहे इस प्रकार का घृणित कृत्य पुजारी रूपी अध्यापकों की चारित्रिक व शैक्षिक योग्यताओं पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं। वस्तुतः पथभ्रष्ट हो रहे हैं इस प्रकार के शिक्षक जो शिक्षा को व्यापार बनाये हुए हैं। भोग-विलास की भावनाओं से लिप्त इनका स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है। शारीरिक दंड़, ट्यूशन के लिए बाध्य करना इत्यादि से गिरते-गिरते अब कुटिल दृष्टि व चरित्रहीनता का चोला भी पहन लिया। कितनी शर्मनाक स्थिति है! स्कूल-कॉलेज के बाहर पुलिस खड़ा कर, गुण्डा दमन दल बनाकर प्रशासन अपनी बाह्यय जिम्मेेदारी से तो निवृत्त हो गया परन्तु आन्तरिक सुरक्षा का आधार क्या हो? यह किस प्रकार प्राप्त होगी? इस छात्रा के अभिभावक व स्वयं छात्रा का सशक्त हो उठाया गया पुलिस रिपोर्ट करने का कदम निःसन्देंह सरहानीय है परन्तु इस प्रकार के निकृष्ट कर्माें की न जाने कितनी छात्राएँ चुपचाप शिकार हो रही हैं। उनकी सिसकियों की आहट किसी तक नहीं पहुँचती। आखिर क्यों विद्यालय प्रशासन आन्तरिक सुरक्षा के प्रश्न पर निर्लज्ज हो जाता है? वास्तव में इन मामलों को व्यक्तिगत समस्या मानकर संगठित न होने के कारण हार का सामना करना पड़ता है। यदि सभी अभिभावक एकत्र हो इस प्रकार की घटनाओं का विरोध करें तो अवश्य ही हमारी बच्चियाँ किसी भी प्रकार के शोषण का शिकार होने से बच जायेंगी।
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