‘‘बेटियों का जन्म खुशियों का हकदार’’
बेटी के जन्म पर खुशियाँ, पढ़कर ऐसा लगा मानो किसी ने उपहास स्वरूप अख़बार में ये ख़बर दी हो। परन्तु पूरी ख़बर पढ़कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि पुरूष प्रधानता का दायरा सिमट रहा है और बेटियों के जन्म को भी उस खुशी का सानिध्य प्रदान किया जा रहा है जिसके हकदार अभी तक केवल बेटे थे। बागपत-शामली जैसे ग्रामीण क्षेत्र से इस नयी विचारधारा के बहाव में यदि कुछ अन्य परिवार और सम्मिलित हो जाये तो भू्रण हत्या जैसे कुकृत्यों का काल निश्चित रूप से निकट होगा और बिगड़ता स्त्री-पुरूष लिंगानुपात संतुलित हो, प्रकृति के नियम को वजूद प्रदान करेगा। बागपत-शामली के इन परिवारांे ने ग्रामीण क्षेत्र की रूढ़िवादी परम्पराओं का हवाला दे बेटियों का दुख मनाने वालों के लिए एक मिसाल कायम की है कि विस्तृत सोच किसी निश्चित परिवेश की बपौती नहीं होती। शहरवासी प्रदत सुविधाओं का दुरूपयोग कर रहे हैं और ग्रामीण ईश्वरीय देन का सम्मान करते हुए स्वागत कर रहे हैं। वास्तव में ये परिवार बधाई के पात्र हैं। सभी बेटियाँ इन्हें तहे दिल से धन्यवाद देती हैं।
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