‘‘ईश्वर में विश्वास रखो पर ईश्वर को भी यह विश्वास दिलाओ कि जो वो आपको दे रहा है आप भी उसके योग्य हो।’’
ये पंक्तियाँ ईश्वर में आस्था के सही मायने स्पष्ट कर रही हैं। वास्तव में हम जब भी किसी मुसीबत में होते हैं तो हमारी ईश्वर में आस्था कुछ ज्यादा ही अगाढ़ हो जाती है और ‘भगवान सब ठीक करेंगें’ शब्दों से हम स्वयं को तसल्ली देने लगते हैं। परन्तु ‘ईश्वर हमारी सहायता क्यों करें’ इस प्रश्न पर कभी विचार नहीं करते। ईश्वर ने हम सभी को इस धरती पर कर्म करने के लिए भेजा है। यदि हम अपने इस कर्तव्य का पालन नहीं कर रहे हैं तो क्यों यह उम्मीद लगाते हैं कि ईश्वर हमारी सहायता करे।
‘ईश्वर उन्हीं की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं।’ इस कथन का भाव भी वही है जो उपर्युक्त पंक्ति का। रास्ते रास्तों पर चलने से ही मिलते हैं। समस्याएँ कर्म करने से ही सुलझ सकती है। हाथ पर हाथ रखे ईश्वर के सम्मुख बैठकर घण्टी बजाने से, राम-नाम का अलाप जपने से कोई कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। प्यासा बुझाने के लिए न केवल कुएँ तक जाना आवश्यक है अपितु कुएँ से पानी निकालने की मेहनत करनी भी पड़ती है।
सारांश यह है कि ईश्वर में अपने यकीन को कम न होने दो परन्तु ईश्वर का आपमें विश्वास रहे इसके लिए कर्म करने से कदम पीछे न हटाओ। ईश्वर भक्ति को कर्महीनता का प्रतीक न बनने दो।
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