ऑनर किलिंग
पिछले कुछ दिनों से ‘ऑनर किलिंग’ की घटनाओं में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है। लगभग प्रतिदिन कोई न कोई युगल ऑनर किलिंग का शिकार हो रहा है। ऐसा नहीं है कि ऑनर किलिंग की घटनाएँ पहले नहीं होती थी परन्तु आज इन घटनाओं पर समाचार-पत्र व चैनलों के अतिश्योक्तियुक्त प्रस्तुतीकरण ने इसे अनावश्यक रूप से बढ़ावा दिया है।
इस प्रकार की घटनाओं के प्रस्तुतीकरण की प्रभावात्मकता इतनी गहन है कि माता-पिता व बुजुर्ग वर्ग के सम्मान से अब यह अहंकार का विषय बन गया है। प्रेमी युगलों की हत्याओं की संख्या में वृद्धि का कारण इसी अहंकार की सन्तुष्टी की लालसा है। वहीं दूसरी ओर प्रेमी युगलों द्वारा आत्महत्याआंे का कारण चहुँ ओर ऑनर किलिंग का व्याप्त भय है।
क्या ऑनर किलिंग वास्तव मेें न्यायोचित है? ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य’ कहे जाने वाले भारतवर्ष में जात-बिरादरी के नाम पर ये कैसा आपराधिक वातावरण बनता जा रहा है? बिरादरी के नाम पर होने वाली पंचायतें ऑनर किलिंग का जहर समाज में भर कैसे मानवाधिकार कानून का उपहास कर रही हैं?
मीडिया को इस अपराध को रोकने के लिए अपने दायित्वों का अहसास करना चाहिए और निस्वार्थ भाव (टी. आर. पी. का लोभ छोड़) से घटनाओं का न्यायपूर्ण प्रस्तुतीकरण करना चाहिए। साथ ही अस्वीकृत व असफल प्रेम के प्रस्तुतीकरण की पुनरावृत्ति को बढ़ावा न देकर स्वीकृत व सफल प्रेम के प्रशंसनीय उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए।
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