नववर्ष के संकल्प
नववर्ष के आगमन के विचार मात्र से ही नवीन कल्पनाएँ व आशाएँ आनन्दित करने लगती हैं। आगामी वर्ष के लिए नित्य नये संकल्प मन को उत्साहित करते हैं। हम नये वर्ष में स्वयं में यह परिवर्तन लायंेगे, इस प्रकार उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ेंगे, इस प्रकार की दिनचर्या अपनायेगें इत्यादि। अथवा नववर्ष का स्वागत रात्रि में धूम मचाकर करेंगे, ये पार्टी, वो उल्लास-हा हुल्ला इत्यादि। निःसन्देह खुशियाँ मनाना या स्वागत करना गलत नहीं है। परन्तु इस सम्पूर्ण विचार-श्रृंखला में एक सर्वनाम की प्रधानता है- ‘हम’। जो कुछ करना है अपने लिए, जो अच्छा हो हमारे लिए, खुशियाँ-उन्नति हमारी हो। क्यों हमारे संकल्पों का आदि-अंत ‘हम’ की परिक्रमा करता है? क्यों हमारे संकल्प ‘निजस्वार्थ’ की सीमा-रेखा के परे ‘परहित’ के द्वार पर दस्तक नहीं दे पाते? यदि हमारे संकल्पों की दिशा पर्यावरण के प्रति जागरूकता व सचेतता लाने हेतु प्रयास करना, गरीबी उन्मूलन हेतु नवीन योजनाओं का निर्माण करना, शिक्षा को सर्वयापी करने हेतु प्रण लेना, भ्रष्टाचार व अत्याचार के विरूद्ध आवाज उठाना इत्यादि हो और इन संकल्पों में से कोई एक भी, आंशिक रूप से ही सही क्रियान्वित हो तो निश्चित रूप से ‘संकल्प’ शब्द की सार्थकता आनन्दित हो उठेगी। ये संकल्प ‘हम’ शब्द से ही जुड़े है परन्तु परोक्ष रूप से। इनकी धारा प्रत्यक्ष लाभ की दिशा से विपरीत है परन्तु अन्ततः लाभान्वित ‘हम’ ही है। ‘लाभ’ सदा ‘आर्थिक’ हो यह आवश्यक नहीं है। आन्तरिक व आत्मिक प्रसन्नता वास्तविक लाभ के पर्याय है। आत्मकल्याण की भावना से परे जब मानव जनकल्याण की संवेदनाओं की नदी में डुबकी लगाने लगेगा तब ‘कठोते में गंगा’ आ जायेगी और हमारी गंगा माँ भी उस पवित्र धारा में बह रहे पापों (गंदगी) से मुक्त हो जायेगी।
No comments:
Post a Comment