Monday, May 16, 2011

फैसला


फैसला
काफी दिनों से चलते आ रहे वाद-विवाद और द्वंद का कल शायद अन्तिम दिन हो। कल मेरे आने वाले कल पर एक ऐसा फैसला लिया जायेगा जो पिछले छः माह से घर में वाद-विवाद का विषय बना हुआ है। देखना ये है कि ये फैसला परम्परागत रूढ़िवादी विचारधारा का समर्थन करते हुए बेटी के भविष्य को दाँव पर लगायेगा या अनावश्यक अहितकारी सामाजिक व मानसिक दबाव के विरूद्ध सशक्त हो बेटी के हित को प्राथमिकता देगा। यही सोचते-सोचते सारी रात खुली आँखों में संशय व भय का अंधकार लिए बीत गई।
अगले दिन सुबह नाश्ते की आवश्यकता किसी को न थी। सभी ड्राइंग रूम में एकत्रित हुए। शान्त, उलझे चहरे टकटकी लगाये पिताजी के मुख की ओर देख रहे थे। सभी के भावों और उत्सुकता को अधिक प्रतिक्षा न कराते हुए पिताजी ने कहा, ‘‘यह फैसला मेरे लिए ऐसा है जैसे किसी बच्चे से कहा जाये कि वो अपनी माँ या पिता में से किसी एक का चयन करे। एक ओर मेरी सामाजिक मर्यादाएँ और परम्पराएँ हैं और दूसरी ओर मेरी बेटी का हित। एक ओर हमारी ही जाति का एक अयोग्य लड़का है और दूसरी ओर गैर-बिरादरी परन्तु बेटी के लिए उसकी पसंद का सर्वोत्तम चयन है, जो उसके सुखद भविष्य की गारंटी भी है। मेरी मान्यताएँ गैर-बिरादरी के चयन से मुझे रोक रही हैं परन्तु बेटी का प्यार, स्नेह ओर सुरक्षित भविष्य मझे उसकी पसंद को अपनी पसंद बनाने के लिए बाध्य कर रहा है। सालों से चली आ रही विचारधारा के विरूद्ध एक नई सोच को अपनाना मेरे लिए वास्तव में कठिन है। परन्तु शायद बेटी का हित और उसकी खुशी ही मेरी प्राथमिकता है। अतः मेरा फैसला उसके फैसले का समर्थन करता है और मैं उसकी पसंद स्वीकार करता हूँ।’’
उनके शब्दों ने मुझे चौंका दिया। सभी की आँखें भर आई और पिताजी ने मुझे गले से लगा लिया।

1 comment:

  1. muje iss post per comment kerte hue bhi ajeeb saa dar lag rha hai (apse) aur aur anya samaj se ,,,,

    Apne Liye ni kintu ...

    mere Apno k Liye( N and all) bas ....

    per mai dar k ni rah sakta....

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